Aryabhatta: शून्य से शुरू हुई क्रांति! जानिए कैसे आर्यभट ने बदल दी गणना की दिशा

Aryabhatta: शून्य से शुरू हुई क्रांति! जानिए कैसे आर्यभट ने बदल दी गणना की दिशा

Aryabhatta का जन्म 476 ईस्वी में हुआ था। कुछ विद्वान मानते हैं कि वे बिहार के कुसुमपुर या पाटलिपुत्र में पैदा हुए थे जबकि कुछ लोग केरल को उनका जन्मस्थान मानते हैं। बचपन से ही वे विद्या के प्रति अत्यंत समर्पित थे। उनकी शिक्षा नालंदा विश्वविद्यालय से हुई थी जो उस समय का सबसे बड़ा शिक्षा केंद्र माना जाता था। उन्होंने गणित और खगोलशास्त्र जैसे कठिन विषयों में गहरी रुचि दिखाई और इन्हें अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।

आर्यभट की प्रमुख कृति – आर्यभटीय

आर्यभट की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘आर्यभटीय’ है। यह ग्रंथ चार भागों में बंटा हुआ है – गीतिकपाद, गणितपाद, कालक्रमपाद और गोलपाद। इसमें उन्होंने गणित और खगोलशास्त्र के कई जटिल सिद्धांतों को सरल भाषा में समझाया है। उन्होंने बीजगणित, त्रिकोणमिति और अंकगणित के अनेक सूत्र प्रस्तुत किए।

गणित में आर्यभट का योगदान

आर्यभट पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है। उन्होंने ‘शून्य’ की अवधारणा को विस्तार दिया और दशमलव पद्धति का प्रयोग किया। आर्यभट ने ‘π’ (पाई) का सटीक मान 3.1416 बताया जो आधुनिक मान के बहुत करीब है। उन्होंने वर्गमूल निकालने की विधियाँ और त्रिकोणमिति के लिए sine और cosine जैसे फ़ंक्शनों की व्याख्या की।

खगोलशास्त्र में आर्यभट की उपलब्धियाँ

आर्यभट ने ग्रहणों की व्याख्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से की। उन्होंने बताया कि सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण छाया के कारण होते हैं न कि किसी राक्षस या देवता के कारण। उन्होंने यह भी बताया कि चंद्रमा स्वयं प्रकाश नहीं देता बल्कि वह सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करता है। उन्होंने दिन और रात की अवधारणा को पृथ्वी की घूर्णन गति से जोड़ा।

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आर्यभट की प्रेरणा और प्रभाव

आर्यभट की विद्वता का असर न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी पड़ा। अरब देशों में उनके ग्रंथों का अनुवाद हुआ और वहां के विद्वानों ने भी उनके सिद्धांतों को अपनाया। यूरोप के गणितज्ञों ने भी उनके कार्यों से प्रेरणा ली। भारत सरकार ने 1975 में उनके नाम पर पहला उपग्रह ‘आर्यभट’ लॉन्च किया जिससे उनकी महानता को सम्मान मिला।

आर्यभट न केवल गणित और खगोलशास्त्र के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले व्यक्ति थे बल्कि वे भारतीय ज्ञान परंपरा के स्तंभ भी थे। उनकी सोच, उनके सिद्धांत और उनका दृष्टिकोण आज भी विज्ञान की दुनिया में मार्गदर्शक हैं। वे भारत की वैज्ञानिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं और उनका नाम सदैव आदर के साथ लिया जाता रहेगा।

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