History of Dwarka: द्वारका भारत की सबसे प्राचीन और पवित्र नगरियों में से एक मानी जाती है। इसका उल्लेख महाभारत, पुराणों और स्कंद पुराण जैसे ग्रंथों में भी मिलता है। यह नगरी भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी थी जो उन्होंने मथुरा से आकर समुद्र किनारे बसाई थी। ऐसा कहा जाता है कि द्वारका शब्द का अर्थ होता है ‘द्वारों का नगर’ और यह नगर श्रीकृष्ण द्वारा बसाई गई सात पुरातन नगरियों में एक थी।
भगवान श्रीकृष्ण और द्वारका
महाभारत के अनुसार जब मथुरा में कंस का अंत हुआ और श्रीकृष्ण ने जरासंध जैसे कई दुश्मनों से युद्ध किया तो उन्होंने यदुवंश की रक्षा के लिए एक सुरक्षित स्थान की खोज की। तभी उन्होंने समुद्र किनारे द्वारका को बसाया और इसे सोने जैसी चमचमाती नगरी बनाया। कहते हैं कि यह नगर इतना समृद्ध और भव्य था कि इसकी तुलना स्वर्ग से की जाती थी। द्वारका श्रीकृष्ण का राजनीतिक और धार्मिक केंद्र बन गया।
समुद्र में समाई नगरी
द्वारका को लेकर सबसे रहस्यमयी बात यह है कि यह पूरी नगरी श्रीकृष्ण के निधन के बाद समुद्र में समा गई थी। यह घटना महाभारत के अंत में वर्णित है। कहते हैं कि श्रीकृष्ण के स्वधाम गमन के बाद यदुवंश का अंत हुआ और द्वारका धीरे धीरे समुद्र में डूबती चली गई। कई पुराणों में भी द्वारका के डूबने का जिक्र मिलता है।
पुनः खोजी गई प्राचीन नगरी
आधुनिक समय में समुद्र विज्ञान और पुरातत्व की मदद से वैज्ञानिकों ने द्वारका के अवशेष गुजरात के समुद्री तट पर खोज निकाले हैं। 1980 के दशक में समुद्र के नीचे पुरानी दीवारें, खंभे, सीढ़ियाँ और अन्य संरचनाएँ मिलीं। यह प्रमाण दर्शाते हैं कि समुद्र के नीचे एक भव्य नगरी हुआ करती थी। इन खोजों ने द्वारका को केवल एक धार्मिक स्थल से आगे बढ़ाकर एक ऐतिहासिक सत्यता भी प्रदान की।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
आज की द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में स्थित है और यह चार धामों में से एक है। यहाँ स्थित द्वारकाधीश मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित है और लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। द्वारका का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व इसे भारत की सबसे महान धरोहरों में से एक बनाता है। यहाँ की गंगा घाटी सभ्यता से जुड़ी खुदाइयाँ और समुद्र में डूबी नगरी का इतिहास लोगों को आकर्षित करता है।