Haihaya dynasty: महाभारत और पुराणों में वर्णित हैहय वंश भारत के प्राचीन और शक्तिशाली क्षत्रिय वंशों में से एक था। यह वंश चंद्रवंशी यदुवंशी परंपरा से संबंधित था और इसका मुख्य राज्य मध्य और पश्चिम भारत में स्थित था। हैहय वंश की राजधानी महिष्मती थी जो वर्तमान मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी के किनारे बसी थी। इस राज्य का सबसे प्रसिद्ध राजा अर्जुन कार्तवीर्य था जिसे सहस्रबाहु भी कहा जाता है। यह वही राजा है जिसने रावण को युद्ध में हराकर उसे बंदी बनाया था।
हैहय वंश की उत्पत्ति और प्रमुख गण
हैहय (संस्कृत: हैहय) वंश वास्तव में पांच प्रमुख गणों का एक संघ था जिनकी उत्पत्ति यदु से मानी जाती है। हरिवंश पुराण के अनुसार हैहय, यदु के परपोते और सहस्रजीत के पोते थे। विष्णु पुराण में इन पांचों हैहय गणों का उल्लेख तलजंघों के रूप में भी किया गया है। ये पांच गण थे – वितिहोत्र, शर्याता, भोज, अवंति और तुंडिकेर। हैहय लोग मूलतः वर्तमान मालवा क्षेत्र के निवासी माने जाते हैं और इन्हें अवंति राज्य के पहले शासक वंश के रूप में पहचाना गया है।
महिष्मती नगरी की स्थापना की कहानी
महाभारत और हरिवंश जैसे ग्रंथों में महिष्मती नगरी की स्थापना का श्रेय राजा महिष्मंत को दिया गया है जो हैहय वंश के राजा साहंज के पुत्र और यदु वंश के वंशज थे। हालांकि कुछ ग्रंथों में मुचुकुंद को भी महिष्मती और पुरीका नामक नगरों का निर्माता माना गया है। एक और मत पद्म पुराण में आता है जिसके अनुसार इस नगर की स्थापना किसी महिष नामक व्यक्ति ने की थी। इन विभिन्न मतों के बावजूद महिष्मती नगर हैहय वंश की प्रमुख राजधानी रहा और यही से उन्होंने अपना साम्राज्य फैलाया।
अर्जुन कार्तवीर्य: सहस्रबाहु का पराक्रम
हैहय वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा अर्जुन कार्तवीर्य थे जिन्हें सहस्रबाहु के नाम से भी जाना जाता है। यह राजा चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि से विभूषित थे। ऋग्वेद में भी इनका नाम मिलता है। इन्हें दत्तात्रेय की कृपा प्राप्त थी और उन्हीं की तपस्या से अर्जुन को अद्भुत शक्ति मिली थी। उन्होंने नागराज कर्कोटक से महिष्मती नगरी को जीतकर इसे अपनी राजधानी बनाया। वायु पुराण के अनुसार उन्होंने लंका पर आक्रमण किया और रावण को बंदी बना लिया था। हालांकि उनके पुत्रों ने भृगुवंशी ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी थी और इसके बदले में परशुराम ने अर्जुन को मार गिराया।
वितिहोत्र वंश और सत्ता का विस्तार
अर्जुन कार्तवीर्य के बाद उनके पुत्र जयध्वज राजा बने और उनके बाद तलजंघ ने शासन किया। आगे चलकर हैहय वंश वितिहोत्र नामक प्रमुख शाखा से जाना जाने लगा। वितिहोत्र अर्जुन के परपोते और तलजंघ के पुत्र थे। इस शाखा के प्रमुख शासकों में अनंत और उनके पुत्र दुर्जय अमित्रकर्षण का नाम आता है। वितिहोत्रों के शासनकाल में हैहय वंश का विस्तार उत्तर की ओर गंगा के मध्य मैदान तक हुआ लेकिन उन्हें इक्ष्वाकु राजा सगर ने आगे बढ़ने से रोक दिया था।
हैहय वंश का अंत और अवंति का विभाजन
धीरे-धीरे वितिहोत्रों के शासनकाल में अवंति क्षेत्र दो भागों में बंट गया। विंध्याचल पर्वत इन दोनों क्षेत्रों को विभाजित करता था। उत्तर में उज्जयिनी और दक्षिण में महिष्मती प्रमुख नगर बने। मत्स्य पुराण के अनुसार वितिहोत्रों के अंतिम उज्जयिनी नरेश रिपुंजय के मंत्री पुलिक ने राजा की हत्या कर अपने पुत्र प्रद्योत को राजा बना दिया और इस प्रकार हैहय वंश का अंत हुआ।
इस प्रकार, हैहय वंश भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली और वीरतापूर्ण अध्याय रहा। इस वंश ने अपने पराक्रम, संस्कृति और प्रशासन से भारतीय उपमहाद्वीप में अमिट छाप छोड़ी थी। अर्जुन कार्तवीर्य जैसे महान सम्राट ने जिस तरह रावण को बंदी बनाया, वह दर्शाता है कि यह वंश कितना शक्तिशाली और प्रभावशाली था। हैहय वंश की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि पराक्रम के साथ-साथ संयम और मर्यादा का होना भी आवश्यक है अन्यथा अंत विनाशकारी हो सकता है।