Chhatrapati Sambhaji Maharaj: छत्रपती शिवाजी महाराज के पुत्र और मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपती संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को हुआ था। वे साहसी योद्धा और धर्म के सच्चे रक्षक थे। मात्र दो वर्ष की उम्र में अपनी माता साईबाई को खो देने के बाद उनका पालन-पोषण जिजाबाई ने किया। वे बचपन से ही युद्धकला, राजनीति और प्रशासन में निपुण थे। उन्होंने संस्कृत, मराठी, फारसी समेत नौ भाषाएं सीखी थीं। 1666 में उन्होंने येसुबाई से विवाह किया और उनके पुत्र शहू महाराज हुए। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय उन्हें युवराज घोषित किया गया था और 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने रामनगर के युद्ध में पहली बार सेना का नेतृत्व किया।
राजनैतिक साज़िशें और गद्दी पर अधिकार
शिवाजी महाराज के निधन के बाद सत्ता संघर्ष शुरू हो गया। शिवाजी की पत्नी सोयराबाई चाहती थीं कि उनका पुत्र राजाराम गद्दी पर बैठे लेकिन सेनापति हंबीरराव मोहिते ने संभाजी महाराज का साथ दिया। 1681 में संभाजी महाराज को छत्रपती घोषित किया गया। सत्ता पर कब्जा करने के बाद उन्होंने गद्दारी करने वाले अन्नाजी दत्तो और अन्य दरबारियों को हाथियों के पैरों तले कुचलवा दिया। इससे स्पष्ट हो गया कि वे न सिर्फ युद्ध में बल्कि प्रशासन में भी निर्णायक और कठोर निर्णय लेने में सक्षम थे।
औरंगज़ेब के खिलाफ महायुद्ध
संभाजी महाराज ने 1681 से 1689 तक लगातार मुगलों के खिलाफ युद्ध किया। औरंगज़ेब ने 8 लाख की विशाल सेना के साथ महाराष्ट्र पर हमला किया लेकिन संभाजी ने पहाड़ी युद्धनीति और छापामार युद्ध के जरिए उसे वर्षों तक उलझाए रखा। 1684 तक उन्होंने राजगढ़, पुरंदर, सिंहगढ़ जैसे किलों की सफल रक्षा की। मुगलों ने कई बार रिश्वत देकर किले हथियाने की कोशिश की लेकिन मराठों की एकजुटता ने उन्हें हर बार पीछे धकेला। 1689 में कुछ विश्वासघातों की वजह से कुछ किले हाथ से निकल गए लेकिन संभाजी की रणनीति और हिम्मत ने मुगलों को उत्तर भारत में आगे बढ़ने से रोक दिया।
पुर्तगालियों के खिलाफ संघर्ष और धर्म रक्षा
संभाजी महाराज ने ना केवल मुगलों बल्कि गोवा में पुर्तगालियों के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया था। वे गोवा में हो रहे जबरन धर्म परिवर्तन और मंदिरों के विध्वंस के खिलाफ सख्त थे। उन्होंने हिंदुओं को पुनः अपने धर्म में लौटने के लिए प्रेरित किया और हिंदू संस्कृति व परंपराओं की रक्षा की। यह कदम उस समय बहुत साहसिक था जब अधिकांश राजा मुगलों या यूरोपीय ताकतों के आगे झुक चुके थे। उनकी यह धर्मवीर छवि आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है।
गद्दारी, बंदी और बलिदान की त्रासदी
1689 में संभाजी महाराज को उनके ही रिश्तेदार गणोजी शिर्के ने धोखा देकर मुगलों के हवाले कर दिया। औरंगज़ेब ने उन्हें 40 दिनों तक भीषण यातनाएं दीं और जबरन इस्लाम कबूल करवाने की कोशिश की लेकिन संभाजी महाराज ने सिर झुकाने से इंकार कर दिया। अंततः 11 मार्च 1689 को पुणे के पास भीमा नदी किनारे तुलापुर में उन्हें निर्दयता से मार दिया गया। उनकी शहादत केवल एक राजा की नहीं थी बल्कि धर्म, स्वाभिमान और भारत की आत्मा की रक्षा के लिए दी गई थी।
छत्रपती संभाजी महाराज की अमर विरासत
संभाजी महाराज की शहादत ने मराठों के मन में औरंगज़ेब के खिलाफ अग्नि जगा दी। उनकी पत्नी येसुबाई और पुत्र शहू को मुगलों ने बंदी बना लिया। लेकिन मराठा संघर्ष राजाराम महाराज और फिर महारानी ताराबाई के नेतृत्व में जारी रहा। औरंगज़ेब 27 वर्षों तक दक्षिण में ही फंसा रहा और यही उसकी साम्राज्य के पतन की शुरुआत बनी। संभाजी महाराज की वीरता, साहस और धर्मनिष्ठा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गई। उनके नाम पर कई किले, प्रतिमाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम महाराष्ट्र में आज भी देखे जाते हैं। शाहीर योगेश द्वारा रचित पोवाड़ा “शेर शिवा का छावा था” आज भी मराठों के दिलों में जोश भर देता है।