Magadha Dynasty: छठी शताब्दी ईसा पूर्व से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व तक भारत की चार महाजनपदें – मगध, कोशल, अवंति और वत्स – आपस में श्रेष्ठता की होड़ में लगी थीं। लेकिन अंततः मगध ने विजय प्राप्त की और पूरे उत्तर भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। आज का बिहार ही उस ऐतिहासिक मगध राज्य का क्षेत्र है। महाभारत में वर्णित जरासंध को मगध साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है जो बृहद्रथ वंश का वंशज था। मगध का साम्राज्य समय के साथ इतना शक्तिशाली हो गया कि वह मौर्य साम्राज्य की नींव भी बना।
हर्यक वंश और बिंबिसार का युग
मगध में सबसे पहला प्रभावशाली और संगठित शासन हर्यक वंश का था। इस वंश के सबसे प्रमुख राजा थे बिंबिसार, जिन्होंने 558 ईसा पूर्व से 491 ईसा पूर्व तक शासन किया। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार उन्होंने लगभग 52 वर्षों तक शासन किया। वे बुद्ध और महावीर दोनों के समकालीन थे और उनके अनुयायी भी माने जाते हैं। उन्होंने अपनी राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) में बनाई जो पांच पहाड़ियों से घिरी थी और इसके सभी प्रवेश द्वार पत्थरों से बंद थे जिससे यह दुर्गम बन गई थी। बिंबिसार ने पहली बार स्थायी सेना बनाई और राजनीतिक स्थायित्व के लिए विवाह संबंधों की नीति अपनाई। उन्होंने कोशल, लिच्छवी और मद्र की राजकुमारियों से विवाह किया जिससे उनकी स्थिति और मज़बूत हो गई।
अजातशत्रु और आक्रामक विस्तार नीति
बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु ने 492 ईसा पूर्व में अपने पिता की हत्या कर सत्ता संभाली। उसने बुद्ध की मृत्यु के बाद 483 ईसा पूर्व में पहली बौद्ध सभा का आयोजन राजगृह में करवाया। अजातशत्रु ने कोशल और वैशाली के खिलाफ युद्ध किए और खासकर लिच्छवी राज्य को पराजित करने में उसे 16 साल लग गए। इस युद्ध में उसने युद्ध के लिए पत्थर फेंकने वाली यंत्रों और गदा लगे रथों का इस्तेमाल किया। अजातशत्रु ने राजधानी की किलेबंदी भी शुरू करवाई थी क्योंकि उसे अवंति से खतरे की आशंका थी। लेकिन उसकी मृत्यु तक अवंति ने हमला नहीं किया।
उदयिन और राजधानी का स्थानांतरण
अजातशत्रु के बाद उसका पुत्र उदयिन (460 ईसा पूर्व – 444 ईसा पूर्व) राजा बना। उसने राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) स्थानांतरित कर दिया। पाटलिपुत्र गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित था जिससे सामरिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से यह स्थान बहुत ही लाभकारी था। उदयिन ने वहां एक मजबूत किला बनवाया और मगध का विस्तार उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में छोटानागपुर की पहाड़ियों तक कर दिया। लेकिन अंततः वह अवंति के राजा पालक के कहने पर मारा गया और उसके बाद तीन राजा – अनिरुद्ध, माण्डा और नागदसक – ने सत्ता संभाली। इस काल के अंत में जनता ने विद्रोह कर शिशुनाग नामक मंत्री को राजा बना दिया।
शिशुनाग और नंद वंश का उदय
शिशुनाग वंश का शासन 413 ईसा पूर्व से 345 ईसा पूर्व तक चला। शिशुनाग ने पहले काशी का उपराजा रहकर शासन किया था और बाद में मगध का सम्राट बना। उसने अवंति की शक्ति को समाप्त कर उज्जैन को अपने अधीन कर लिया जिससे 100 वर्षों से चल रही मगध और अवंति की प्रतिद्वंद्विता समाप्त हो गई। बाद में राजधानी को वैशाली और फिर पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया गया। शिशुनाग का पुत्र कालाशोक (काकवर्ण) राजा बना जिसने दूसरी बौद्ध सभा का आयोजन वैशाली में करवाया। उसे एक महल षड्यंत्र में मार डाला गया और नंद वंश सत्ता में आ गया।
महापद्म नंद ने इस वंश की नींव रखी और वह भारत के पहले ‘ऐतिहासिक सम्राट’ कहलाते हैं। उन्होंने कालाशोक को मारकर गद्दी पर कब्जा किया। उनके जन्म को लेकर मतभेद हैं – कुछ कहते हैं वे शूद्र माता से जन्मे थे तो कुछ कहते हैं वे एक नाई और गणिका के पुत्र थे। वे “सर्व क्षत्रियांतक” और “एकरत” जैसे उपाधियों से जाने जाते थे क्योंकि उन्होंने सभी क्षत्रिय शासकों का अंत कर दिया था। उनके बाद उनका पुत्र धनानंद राजा बना जिसे यूनानी लेखक “एग्रामेस” या “जैंड्रामेस” के नाम से जानते हैं। उसने विशाल सेना और कर प्रणाली के बल पर शासन किया लेकिन अत्यधिक कर वसूली और शूद्र जाति का होने के कारण वह लोकप्रिय नहीं रहा। अंततः चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने उसे हटाकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
मगध के उत्कर्ष के प्रमुख कारण
मगध के उदय के पीछे कई भौगोलिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारण थे। भौगोलिक दृष्टि से यह गंगा घाटी में स्थित था और तीन ओर से गंगा, सोन और चंपा नदियों से घिरा हुआ था जो इसे दुर्गम बनाती थीं। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ थी और पर्याप्त वर्षा होती थी। खनिज संसाधनों में लोहा और तांबा भरपूर मात्रा में थे। व्यापार मार्गों पर नियंत्रण और विशाल जनसंख्या इसे समृद्ध बनाती थी। सांस्कृतिक रूप से यहाँ ब्राह्मणों का प्रभुत्व कम था और बौद्ध व जैन दर्शन के उदय ने समाज में उदार सोच को जन्म दिया। राजनीतिक रूप से मगध को बिंबिसार, अजातशत्रु और महापद्म नंद जैसे शक्तिशाली शासक मिले जिन्होंने स्थायी सेनाएं खड़ी कीं और प्रशासन को मजबूत बनाया। इन सब कारणों से मगध धीरे-धीरे पूरे उत्तर भारत में सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया।