General Knowledge: भारत में चुनावों पर होने वाला खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार, भारत इस मामले में दुनिया में पहले स्थान पर है। हर साल चुनावी खर्च खबरों में रहता है, खासकर जब लोकसभा, विधानसभा या स्थानीय निकायों के चुनाव होते हैं। इन हालात में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ यानी ‘एक देश, एक चुनाव’ की चर्चा फिर से जोर पकड़ रही है। यह विचार इस बात को सामने लाता है कि अगर देश में सभी चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो इससे ना केवल खर्च की बचत होगी, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था भी अधिक प्रभावी होगी।
क्या है ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का विचार?
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का अर्थ है कि भारत में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ, एक ही समय पर कराए जाएं। इस विचार को लागू करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई थी, जिसने मार्च 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,000 से अधिक पृष्ठों की विस्तृत रिपोर्ट सौंपी। इसके आधार पर दिसंबर 2024 में केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी और संसद में पेश किया गया। इस नीति का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को आसान बनाना और खर्च को नियंत्रित करना है।
किन्हें मिलेगा लाभ और कैसे होगा फायदा?
लगातार चुनावों से प्रशासनिक तंत्र पर भारी दबाव पड़ता है। अगर चुनाव एक साथ होंगे तो सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाबलों की ड्यूटी कम होगी और उन्हें अन्य विकास कार्यों में लगाया जा सकेगा। आदर्श आचार संहिता की बार-बार लागू होने की प्रक्रिया से योजनाओं और नीतियों में देरी होती है, लेकिन एक साथ चुनावों से यह रुकावट दूर हो सकेगी। इसके अलावा चुनाव प्रचार पर होने वाला खर्च भी घटेगा, जिससे क्षेत्रीय और छोटे दलों को राहत मिलेगी। बार-बार मतदान के चलते आम नागरिकों को भी परेशानी होती है। एक साथ चुनावों से उन्हें बार-बार वोटिंग के लिए समय नहीं निकालना पड़ेगा, जिससे मतदान प्रतिशत बढ़ने की संभावना है। अनुमान है कि इससे देश की जीडीपी में 1.5% तक की वृद्धि हो सकती है, जो 2023-24 के वित्तीय वर्ष में लगभग ₹4.5 लाख करोड़ के बराबर है।
कितनी हो सकती है बचत?
भारत में पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था, तब कुल खर्च करीब ₹10 करोड़ था। 2009 के लोकसभा चुनाव में यह खर्च ₹1114.4 करोड़ पहुंच गया। 2014 में यह बढ़कर ₹3870 करोड़ हो गया और 2019 में यह आंकड़ा ₹6600 करोड़ तक पहुंच गया। चुनाव आयोग के अनुसार, अगर 2029 में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को लागू किया गया, तो इसकी लागत ₹7951 करोड़ के आसपास होगी। इस खर्च में वोटिंग मशीनों की खरीद, मतदाता सूची का अद्यतन, और सुरक्षा प्रबंध शामिल होंगे। हालांकि यह प्रारंभिक लागत अधिक लग सकती है, लेकिन लंबे समय में यह व्यवस्था देश को हर पांच साल में हजारों करोड़ रुपये की बचत दिला सकती है। इसके साथ ही चुनावों की पारदर्शिता और कुशलता भी बढ़ेगी।