Ajeevika History: आजीविक संप्रदाय की स्थापना मक्कलि गोसाल ने की थी जो बुद्ध और महावीर के समकालीन थे। यह संप्रदाय नियतिवाद में विश्वास करता था और ब्राह्मणवाद का विरोधी था। मौर्य सम्राट बिंदुसार इसके समर्थक थे। श्रमण परंपराओं ने स्वतंत्र चिंतन को बढ़ावा दिया लेकिन आजीविक परंपरा अब लुप्त हो चुकी है।
1. प्रश्न: आजीविक संप्रदाय की स्थापना किसने की थी?
उत्तर: आजीविक संप्रदाय की स्थापना मक्कलि गोसाल ने की थी।
2. प्रश्न: मक्कलि गोसाल किसके समकालीन थे?
उत्तर: वे महावीर और गौतम बुद्ध के समकालीन थे।
3. प्रश्न: आजीविक संप्रदाय का प्रमुख सिद्धांत क्या था?
उत्तर: उनका प्रमुख सिद्धांत था नियतिवाद यानी सब कुछ पूर्वनिर्धारित होता है।
4. प्रश्न: आजीविक किस प्रकार का जीवन जीते थे?
उत्तर: वे तपस्वी जीवन जीते थे और कठोर आत्मसंयम का पालन करते थे।
5. प्रश्न: आजीविकों का ब्राह्मणवाद के प्रति क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर: वे ब्राह्मणवाद और यज्ञ परंपरा का विरोध करते थे।
6. प्रश्न: मौर्य सम्राट बिंदुसार का आजीविक संप्रदाय से क्या संबंध था?
उत्तर: बिंदुसार आजीविकों का संरक्षक था और उसने उन्हें राजकीय समर्थन दिया था।
7. प्रश्न: आजीविकों की वेशभूषा कैसी होती थी?
उत्तर: वे प्रायः नग्न रहते थे और अत्यंत सरल जीवन जीते थे।
8. प्रश्न: आजीविक किस बात में विश्वास नहीं करते थे?
उत्तर: वे कर्म सिद्धांत और आत्मा की स्वतंत्रता में विश्वास नहीं करते थे।
9. प्रश्न: आजीविकों की शिक्षा का केंद्र कौन सा क्षेत्र था?
उत्तर: मगध, कोसल और विदेह क्षेत्र आजीविकों के मुख्य केंद्र थे।
10. प्रश्न: क्या आजीविक धर्म आज भी अस्तित्व में है?
उत्तर: नहीं, यह संप्रदाय अब लुप्त हो चुका है।
11. प्रश्न: अन्य कौन-कौन सी श्रमण परंपराएँ उस काल में प्रचलित थीं?
उत्तर: बौद्ध, जैन, चार्वाक और अज्नानिक परंपराएँ प्रमुख थीं।
12. प्रश्न: श्रमण परंपराएँ किस बात की विरोधी थीं?
उत्तर: ये यज्ञ, ब्राह्मण वर्चस्व और पशु बलि का विरोध करती थीं।
13. प्रश्न: चार्वाक दर्शन किस बात पर बल देता था?
उत्तर: वह केवल भौतिक सुख और प्रत्यक्ष अनुभव को सत्य मानता था।
14. प्रश्न: श्रमण परंपराओं ने समाज में क्या योगदान दिया?
उत्तर: इन्होंने नैतिकता, स्वतंत्र चिंतन और सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया।
15. प्रश्न: आजीविक परंपरा का ऐतिहासिक महत्त्व क्या है?
उत्तर: यह भारतीय दर्शन में एक स्वतंत्र विचारधारा का प्रतीक है जिसने कर्मवाद और आत्मा जैसे विचारों को चुनौती दी।