Champaran Satyagraha 1917: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में चंपारण सत्याग्रह एक ऐतिहासिक मोड़ था। यह महात्मा गांधी का भारत में पहला बड़ा राजनीतिक आंदोलन था। 1917 में बिहार के चंपारण ज़िले में किसानों की समस्याओं को लेकर जब गांधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोला तो यह देश की आज़ादी की लड़ाई की पहली सीढ़ी साबित हुआ। यह आंदोलन न सिर्फ सफल हुआ बल्कि इससे गांधी जी को “राष्ट्रपिता” के रूप में पहचान मिलनी शुरू हो गई।
किसानों की त्रासदी: तीनकठिया प्रथा की पीड़ा
चंपारण के किसान नील की खेती को लेकर बुरी तरह पीड़ित थे। अंग्रेज जमींदारों ने “तीनकठिया” नाम की ज़ालिम प्रथा लागू की थी जिसके तहत किसानों को अपनी ज़मीन का तीन हिस्सा अंग्रेजों के लिए नील की खेती में लगाना होता था। इससे उन्हें आर्थिक नुकसान तो होता ही था साथ ही नील की कीमतें भी बहुत कम मिलती थीं। ऊपर से अगर कोई किसान नील की खेती से इनकार करता तो उसे जुर्माना देना पड़ता या मारपीट झेलनी पड़ती थी।
गांधी जी का आगमन और शुरुआत
राजकुमार शुक्ल नाम के एक किसान नेता ने गांधी जी को चंपारण आने के लिए प्रेरित किया। गांधी जी ने किसानों की स्थिति खुद देखी और उनके दुख-दर्द को समझा। वे अप्रैल 1917 में चंपारण पहुँचे। शुरुआत में ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें वहाँ से जाने का आदेश दिया लेकिन गांधी जी ने सिविल नाफरमानी (Civil Disobedience) का रास्ता अपनाया और साफ कहा कि वे बिना काम पूरा किए चंपारण नहीं छोड़ेंगे। उनके इस साहसिक कदम ने लोगों को प्रेरित किया।
जांच समिति और अंग्रेजों की झुकावट
गांधी जी के दबाव और लगातार बढ़ते जन समर्थन को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने एक जांच समिति गठित की जिसमें गांधी जी को भी शामिल किया गया। गांधी जी ने प्रमाणों और साक्ष्यों के आधार पर तीनकठिया प्रथा की अमानवीयता को साबित किया। अंततः सरकार को किसानों की मांगें माननी पड़ीं और तीनकठिया प्रथा को खत्म कर दिया गया। किसानों को राहत मिली और यह गांधी जी की पहली बड़ी राजनीतिक जीत थी।
परिणाम और ऐतिहासिक महत्व
चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला अहिंसक जन आंदोलन था जिसने यह साबित कर दिया कि सत्य, अहिंसा और दृढ़ संकल्प के बल पर भी ब्रिटिश हुकूमत को झुकाया जा सकता है। यह आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व की प्रभावशीलता को साबित करता है। इससे भारत की जनता में आत्मविश्वास जागा और अहिंसक आंदोलन की परंपरा की नींव पड़ी।