Chhatrapati Shivaji: शिवाजी महाराज का जन्म अप्रैल 1627 या 19 फरवरी 1630 को पुणे के पास स्थित शिवनेरी किले में हुआ था। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ जब भारत का अधिकांश हिस्सा मुगलों और बीजापुर तथा गोलकुंडा के मुस्लिम सुल्तानों के अधीन था। ये सारे शासक केवल ताकत के बल पर राज कर रहे थे और जनता के प्रति किसी जिम्मेदारी का भाव नहीं रखते थे। शिवाजी को बचपन से ही हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों ने व्यथित किया और उन्होंने मात्र 16 वर्ष की उम्र में यह निश्चय कर लिया कि वे हिंदू धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर द्वारा चुने गए हैं। यही भावना जीवनभर उनके संघर्ष की प्रेरणा बनी रही।
शौर्य की शुरुआत: बीजापुर के किलों पर पहला वार
1655 के आसपास शिवाजी ने अपने कुछ भरोसेमंद साथियों के साथ बीजापुर के कमजोर किलों को कब्जे में लेना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने उन हिंदू सरदारों को भी चुनौती दी जो बीजापुर सुल्तानों के साथ मिलकर शासन चला रहे थे। शिवाजी की वीरता, रणनीति और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए उनकी कठोरता ने उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया। बीजापुर के शासक ने जब उन्हें रोकने के लिए अफजल खान को 20,000 सैनिकों के साथ भेजा तो शिवाजी ने चालाकी से उसे पहाड़ी इलाके में बुलाकर एक निजी मुलाकात में मार डाला और पहले से छिपे सैनिकों की मदद से अफजल खान की पूरी सेना को हरा दिया। इस विजय के बाद शिवाजी एक ताकतवर सेनानायक के रूप में उभरकर सामने आए।
मुगलों से सीधी टक्कर और अग्निपरीक्षा
शिवाजी की बढ़ती ताकत से चिंतित होकर मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने दक्षिण के अपने सूबेदार को शिवाजी पर हमला करने का आदेश दिया। लेकिन शिवाजी ने जवाब में सूबेदार के शिविर पर आधी रात को धावा बोल दिया जिसमें सूबेदार घायल हुआ और उसका बेटा मारा गया। बाद में उन्होंने मुगलों की अमीर बंदरगाह सूरत को भी लूट लिया। इस दुस्साहस से परेशान होकर औरंगज़ेब ने अपने सबसे बड़े सेनापति जयसिंह को शिवाजी के खिलाफ भेजा। शिवाजी को संधि करनी पड़ी और उन्हें अपने पुत्र के साथ आगरा के दरबार में उपस्थित होना पड़ा जहां उन्हें नजरबंद कर दिया गया। पर शिवाजी ने बीमार होने का नाटक किया और मिठाइयों से भरी टोकरी में अपने पुत्र के साथ छुपकर भाग निकले। यह भागना उनके जीवन की सबसे रोमांचक घटनाओं में से एक थी।
स्वतंत्रता की ओर बढ़ते कदम और नौसेना का निर्माण
शिवाजी जब आगरा से भागकर अपने क्षेत्र लौटे तो लोगों ने उन्हें खुले दिल से स्वीकारा। दो वर्षों के भीतर उन्होंने अपना सारा खोया हुआ क्षेत्र फिर से जीत लिया और मुगल इलाकों से कर वसूलने लगे। उन्होंने अपनी सेना का पुनर्गठन किया और प्रशासन में कई सुधार किए। अंग्रेज़ों और पुर्तगालियों से प्रेरणा लेकर उन्होंने समुद्री शक्ति को भी विकसित करना शुरू किया और भारत के पहले शासक बने जिन्होंने व्यापार और सुरक्षा दोनों के लिए नौसेना का उपयोग किया। इसी दौरान औरंगज़ेब ने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया और जबरन धर्मांतरण करवाने लगे जिससे शिवाजी की लोकप्रियता और बढ़ी।
राजतिलक और मराठा साम्राज्य की स्थापना
1674 में शिवाजी ने बड़े समारोह के साथ खुद को एक स्वतंत्र राजा के रूप में राजतिलक कराया। यही से मराठा साम्राज्य की औपचारिक शुरुआत हुई। suppressed हिंदू जनता को उनमें एक रक्षक और मार्गदर्शक दिखाई दिया। शिवाजी ने आठ मंत्रियों की एक परिषद के माध्यम से राज्य चलाया। वे कट्टर हिंदू होते हुए भी धार्मिक सहिष्णुता में विश्वास रखते थे। उन्होंने जबरन इस्लाम कबूल कर चुके अपने दो रिश्तेदारों को दोबारा हिंदू धर्म में वापस लाने का आदेश दिया। वे मुस्लिम और ईसाई धर्मस्थलों का सम्मान करते थे और उनके कई सेवक मुस्लिम भी थे। उनके दक्षिणी अभियानों में उन्होंने कई मुस्लिम सुल्तानों से गठबंधन कर मुगलों के विस्तार को रोका।
अंतिम समय और अमर विरासत
शिवाजी के अंतिम वर्षों में उन्हें घरेलू कलह, पुत्र की गद्दारी और मंत्रियों के बीच मतभेदों से जूझना पड़ा। उनके बड़े बेटे ने एक समय मुगलों का साथ भी दिया जिसे बहुत कठिनाई से वापस लाया गया। इन सारी परेशानियों के चलते शिवाजी की सेहत पर असर पड़ा और 3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ के किले में उन्होंने अंतिम सांस ली। शिवाजी न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि एक दूरदर्शी प्रशासक और सच्चे धार्मिक सहिष्णु शासक भी थे। उन्होंने भारत की उस जनता में आत्मविश्वास जगाया जो सदियों से पराधीनता में जी रही थी। उन्होंने औरंगज़ेब जैसे शक्तिशाली मुगल शासक को सीधी चुनौती दी और मराठा साम्राज्य की नींव रखी जो आगे चलकर मुगलों के पतन का कारण बना। आज भी उन्हें ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ के नाम से सम्मान के साथ याद किया जाता है।