Important Act East India Company: ईस्ट इंडिया कंपनी भारत के इतिहास में एक ऐसा अध्याय है जिसने देश की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया। ब्रिटिश संसद ने कंपनी के कार्यों को नियंत्रित करने और उसके शासन को दिशा देने के लिए कई महत्वपूर्ण अधिनियम पारित किए। इन अधिनियमों ने न केवल कंपनी की शक्तियों को सीमित किया बल्कि ब्रिटिश शासन की नींव भी रखी।
रेगुलेटिंग एक्ट 1773
ईस्ट इंडिया कंपनी की अनियमितताओं को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश संसद ने 1773 में रेगुलेटिंग एक्ट पारित किया। इस अधिनियम के तहत बंगाल के गवर्नर को “गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल” का दर्जा दिया गया। वॉरेन हेस्टिंग्स को पहला गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। इस कानून से कंपनी के कार्यों की देखरेख के लिए लंदन में “कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स” की निगरानी को और सशक्त किया गया। यह भारत में ब्रिटिश सरकार की प्रत्यक्ष दखलंदाजी की शुरुआत थी।
पिट्स इंडिया एक्ट 1784
कंपनी की नीतियों पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण बढ़ाने के लिए 1784 में पिट्स इंडिया एक्ट पारित किया गया। इसके तहत “बोर्ड ऑफ कंट्रोल” की स्थापना हुई जो भारत से संबंधित राजनीतिक मामलों की निगरानी करता था। इस अधिनियम से यह स्पष्ट हो गया कि कंपनी अब पूरी तरह स्वतंत्र संस्था नहीं रही बल्कि ब्रिटिश सरकार की अधीनता में आ गई।
चार्टर एक्ट 1813
1813 के चार्टर एक्ट ने कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त कर दिया। अब भारत के साथ व्यापार करने का अधिकार अन्य ब्रिटिश व्यापारियों को भी मिल गया। हालांकि चीन के साथ व्यापार का एकाधिकार कंपनी के पास बना रहा। इस अधिनियम ने भारतीय समाज में शिक्षा और धर्म के प्रसार के लिए भी दरवाजे खोले।
चार्टर एक्ट 1833
यह अधिनियम भारत के इतिहास में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। इसके तहत गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल को “गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया” का दर्जा दिया गया। लॉर्ड विलियम बेंटिंक पहले गवर्नर जनरल बने। कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूरी तरह समाप्त कर दिए गए और उसे केवल प्रशासनिक संस्था बना दिया गया।
चार्टर एक्ट 1853 और भारत शासन अधिनियम 1858
चार्टर एक्ट 1853 के तहत कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की संख्या घटाई गई और सिविल सर्विस परीक्षा प्रणाली शुरू की गई। 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश संसद ने 1858 में “भारत शासन अधिनियम” पारित किया। इसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी को भंग कर दिया गया और भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया गया।
इन सभी अधिनियमों ने भारत में ब्रिटिश शासन की संरचना को आकार दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी का उद्देश्य व्यापार से शुरू हुआ था लेकिन धीरे-धीरे यह राजनीतिक सत्ता में बदल गया। 1858 में कंपनी का अंत हुआ पर उसके छोड़े हुए निशान आज भी भारतीय इतिहास में दर्ज हैं।

