Independence Day 2025: साल 1947 था और भारत में स्वतंत्रता का उत्सव करीब था। देश के हर कोने में तिरंगा फहराने की तैयारियाँ जोरों पर थीं। दिल्ली के ऑफिसों में उस समय फाइलों, दस्तावेजों और अन्य सामानों के बक्से पैक किए जा रहे थे। ब्रिटिश अधिकारी अपने सामान को जल्दी से जल्दी इंग्लैंड भेजना चाहते थे ताकि कोई भी महत्वपूर्ण चीज़ भारत में न रह जाए। लेकिन उस समय एक चीज़ थी, जिसे ब्रिटिश अधिकारी स्कॉटलैंड के पहाड़ों में बने बाल्मोरल किले में जॉर्ज VI को लौटाना चाहते थे। यह चीज आज तक नहीं मिली है और इसके खोने की कहानी आज भी इतिहासकारों के लिए एक रहस्य बनी हुई है।
भारतीयों के हाथों सत्ता का हस्तांतरण
भारत की स्वतंत्रता पर लिखी गई किताबों में अक्सर ऐसे किस्से मिलते हैं, जो ब्रिटिश अधिकारियों के आखिरी दिनों से जुड़े हैं। इसी तरह की एक कहानी उस चीज़ के बारे में भी है जिसे ब्रिटिश स्वतंत्र भारत के पहले खो बैठे थे। जब भारत के अंतिम ब्रिटिश सचिव लार्ड लिस्टोवेल ने जॉर्ज VI को बाल्मोरल किले में यह सूचित किया कि सत्ता का हस्तांतरण भारतीयों को सफलतापूर्वक कर दिया गया है, तो उन्होंने यह भी बताया कि वे कुछ प्राचीन मोहरें लौटाने आए हैं। ये मोहरें ब्रिटिश सचिवालय के पद की पहचान थीं और भारतीय साम्राज्य को ब्रिटिश सिंहासन से जोड़ने का प्रतीक थीं।
ब्रिटिशों की खोई हुई मोहरें
लेकिन दुर्भाग्यवश, ये मोहरें अब उपलब्ध नहीं हैं। इतिहासकारों के अनुसार, कई साल पहले किसी ने इन्हें किसी जगह रख दिया था जो अब तक नहीं मिली। लार्ड लिस्टोवेल ने जॉर्ज VI को बताया कि ब्रिटिश शासन की सत्ता की मोहरें अब उपलब्ध नहीं हैं और उनका कोई पता नहीं चल पाया है। यह स्पष्ट नहीं है कि किसी ने इन्हें स्मृति के रूप में छिपा लिया या स्वतंत्रता की अफरातफरी में कहीं खो गईं। इन मोहरों का खो जाना ब्रिटिश शासन की कुछ गुप्त कहानियों के रहस्य को भी अपने साथ ले गया।
ब्रिटिशों की रहस्यमयी विरासत
इतिहासकारों का मानना है कि यदि कभी ये मोहरें मिल भी जाएं, तो यह केवल धातु के टुकड़े नहीं होंगी। बल्कि ये ब्रिटिश राज के कई गुप्त किस्सों की चाबी साबित होंगी। यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि ब्रिटिश भारत छोड़कर चले गए, लेकिन उन्होंने एक रहस्य छोड़ दिया, जो आज भी अनसुलझा है। सरल शब्दों में कहा जाए तो, स्वतंत्रता के जश्न के बीच, ब्रिटिशों ने भारत में एक गुप्त मोहरों का रहस्य छोड़ दिया, जो समय के पर्दों के पीछे छुपा हुआ है और इतिहासकारों के लिए आज भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।