Maharaja Hari Singh: हरि सिंह कश्मीर के वह शासक थे जिनका नाम भारतीय इतिहास में एक खास पहचान रखता है। वह जम्मू और कश्मीर के अंतिम महाराजा थे। उनका जन्म 23 सितंबर 1895 को हुआ था। हरि सिंह बचपन से ही होशियार और दूरदर्शी थे। उन्हें पढ़ाई के लिए इंग्लैंड के ‘हैर्रो स्कूल’ भेजा गया था जहां से उन्होंने आधुनिक शिक्षा ग्रहण की।
राजा बनने का सफर
हरि सिंह ने 1925 में अपने चाचा महाराजा प्रताप सिंह के निधन के बाद जम्मू और कश्मीर के महाराजा का पद संभाला। वह प्रशासन में सुधार लाने के लिए जाने जाते हैं। उनके राज में शिक्षा पर खास ध्यान दिया गया। उन्होंने कई स्कूल और कॉलेज खोले ताकि हर वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त कर सकें। हरि सिंह का मानना था कि धर्म या जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए।
न्यायप्रिय शासक
महाराजा हरि सिंह को न्यायप्रिय शासक माना जाता था। उन्होंने “राजा प्रजा एक समान” का नारा दिया था। उन्होंने सामाजिक सुधारों की दिशा में कई कदम उठाए जैसे कि बाल विवाह पर रोक और मंदिरों में अछूतों के प्रवेश की अनुमति। उनके शासनकाल में धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा मिला। वह चाहते थे कि कश्मीर एक ऐसा राज्य बने जहां सबको बराबरी का अधिकार हो।
भारत-पाकिस्तान विभाजन और कश्मीर
1947 में भारत का विभाजन हुआ तो जम्मू और कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी। हरि सिंह चाहते थे कि कश्मीर स्वतंत्र रहे ना भारत में शामिल हो और ना पाकिस्तान में। लेकिन पाकिस्तान से आए कबायली हमलावरों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। हालात बिगड़ते देख महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी। बदले में उन्होंने 26 अक्टूबर 1947 को ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किए और जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। यह फैसला आज भी इतिहास में एक बड़ा मोड़ माना जाता है।
जीवन का अंतिम अध्याय
भारत में विलय के बाद महाराजा हरि सिंह का राजनीतिक प्रभाव धीरे-धीरे कम हो गया। 1949 में वह कश्मीर छोड़कर मुंबई चले गए। वहीं पर उन्होंने अपना शेष जीवन बिताया। 26 अप्रैल 1961 को महाराजा हरि सिंह का निधन हो गया। हालांकि उनका शरीर मुंबई में दफनाया गया था लेकिन उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी राख को जम्मू में बहाया जाए।
महाराजा हरि सिंह एक दूरदर्शी, न्यायप्रिय और साहसी शासक थे। उन्होंने जम्मू और कश्मीर के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए कठिन फैसले लिए। उनका जीवन आज भी एक प्रेरणा है कि कैसे नेतृत्व और दृढ़ निश्चय से कठिन समय में भी सही रास्ता चुना जा सकता है।