Malathi Krishnamurthy Holla: मालती होला का जन्म कर्नाटक के एक सामान्य परिवार में हुआ था। जब वह सिर्फ एक साल की थीं तब एक तेज बुखार ने उनके शरीर को लकवाग्रस्त कर दिया। इलाज के लिए उन्हें कई अस्पतालों में ले जाया गया लेकिन डॉक्टरों की लापरवाही ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।
व्हीलचेयर पर शुरू हुआ असली संघर्ष
बचपन से ही मालती व्हीलचेयर पर रहीं लेकिन उन्होंने कभी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। स्कूल जाना मुश्किल था फिर भी वह पढ़ने में तेज थीं। उनका सपना था कि वे कुछ ऐसा करें जिससे लोग उन्हें मजबूरी नहीं बल्कि ताकत के रूप में देखें।
खेलों में खुद को साबित किया
मालती ने पैरा एथलेटिक्स में कदम रखा और खुद को वहां साबित कर दिखाया। उन्होंने देश के लिए 400 से ज़्यादा मेडल जीते हैं जिनमें से 18 अंतरराष्ट्रीय हैं। वह एशियन गेम्स और पैरालंपिक में हिस्सा ले चुकी हैं। उन्होंने दिखा दिया कि हौसले के आगे कोई भी सीमा नहीं होती।
दूसरों की जिंदगी में लाई रोशनी
मालती सिर्फ एक एथलीट नहीं हैं बल्कि एक समाजसेविका भी हैं। उन्होंने ‘मालती होला फाउंडेशन’ की शुरुआत की जो दिव्यांग बच्चों की मदद करता है। वह खुद उनकी पढ़ाई से लेकर रहने तक का इंतज़ाम करती हैं ताकि कोई और बच्चा अपनी सीमाओं में न घुटे।
देश ने किया सम्मानित
भारत सरकार ने मालती होला को उनकी उपलब्धियों के लिए पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया है। उनकी कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं बल्कि उस जज़्बे की है जो हर मुश्किल को पार कर आगे बढ़ता है। वे आज भी कई युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।