Nanda dynasty: नंद वंश ने प्राचीन भारत के उत्तर भाग में स्थित मगध राज्य पर लगभग 343 ईसा पूर्व से 321 ईसा पूर्व तक शासन किया। यह वंश मौर्य वंश के ठीक पहले सत्ता में था और इसके बारे में जो कुछ भी आज ज्ञात है वह किंवदंतियों और ऐतिहासिक तथ्यों का मिश्रण है। ब्राह्मण और जैन परंपराओं दोनों में यह उल्लेख मिलता है कि इस वंश के संस्थापक महापद्म नंद का सामाजिक स्तर काफी निम्न था। उन्हें महापद्मपति या उग्रसेन के नाम से भी जाना जाता है। कई प्राचीन स्रोतों और आधुनिक इतिहासकारों का भी मानना है कि उनका जन्म किसी शूद्र परिवार में हुआ था और यही कारण था कि वे परंपरागत राजशाही वर्गों द्वारा स्वीकार नहीं किए गए।
महापद्म नंद: विस्तार की नीति और ताकतवर शासन
महापद्म नंद ने शिशुनाग वंश के अंतिम राजा से सत्ता हथियाकर न केवल मगध की सत्ता अपने हाथ में ली बल्कि उसकी विस्तारवादी नीति को भी जारी रखा। ऐसा माना जाता है कि महापद्म की प्रारंभिक पहचान एक साहसी योद्धा के रूप में थी जिसने सीमावर्ती क्षेत्रों से उठकर साम्राज्य की नींव रखी। पुराणों में उन्हें “सर्व क्षत्रियांतक” कहा गया है यानी सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला। उन्होंने इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, हैहय, कलिंग, अश्मक, कुरु, मैथिल, शूरसेन और वितीहोत्र जैसे राज्यों को पराजित किया। कुछ स्वतंत्र ऐतिहासिक प्रमाण भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि नंदों ने गोदावरी नदी घाटी, कलिंग और मैसूर के कुछ हिस्सों तक भी विजय प्राप्त की थी।
धनानंद: अंतिम नंद शासक और चंद्रगुप्त की चुनौती
महापद्म नंद के बाद नंद वंश की वंशावली बहुत स्पष्ट नहीं है। पुराणों में केवल एक या दो नाम ही दिए गए हैं जैसे सुकल्प या सुमाल्य। वहीं बौद्ध ग्रंथ ‘महाबोधिवंश’ में आठ नंद शासकों के नामों का उल्लेख मिलता है। इन आठों में अंतिम नाम धनानंद का है जिसे यूनानी स्रोतों में एग्रामेस या ज़ैंड्रामेस के रूप में पहचाना जाता है। वह सिकंदर महान का समकालीन था और बहुत शक्तिशाली शासक माना जाता है। धनानंद का शासनकाल अत्यधिक कर वसूली और अहंकार के कारण बदनाम था। अंततः चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने मिलकर उसकी सत्ता का अंत कर दिया और मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
नंद शासन का काल: एक संक्रमण काल की शुरुआत
नंद वंश का शासनकाल भले ही अधिक लंबा नहीं रहा हो लेकिन यह भारतीय इतिहास के एक बड़े बदलाव के दौर का प्रतिनिधित्व करता है। छठी-पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में गंगा घाटी में कृषि तकनीकों में सुधार हुआ और लोहा प्रयोग में आने लगा जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी हुई। इससे व्यापार और नगरीकरण को बढ़ावा मिला। नंदों के बारे में यह कहा गया है कि उन्होंने इस आर्थिक समृद्धि को अपनी कर प्रणाली के ज़रिए पूर्ण रूप से भुनाया और भारी मात्रा में कर वसूली की। कई भारतीय और विदेशी स्रोतों में नंदों को बेहद धनाढ्य और निर्दयी कर वसूलकर्ता बताया गया है।
नंदों की विशाल सेना और संगठनात्मक कौशल
सिकंदर के समय नंद वंश की सेना की ताकत चौंकाने वाली थी। कहा जाता है कि उनके पास 20,000 घुड़सवार, 2,00,000 पैदल सैनिक, 2,000 रथ और 3,000 हाथी थे। इतनी विशाल सेना का संचालन और रखरखाव केवल एक अत्यंत संगठित और मजबूत प्रशासन से ही संभव था। इस प्रशासनिक दक्षता का प्रमाण कलिंग में किए गए सिंचाई परियोजनाओं और मंत्री परिषद के संचालन से मिलता है। इस तरह का संगठित शासन केवल एक शक्तिशाली और दूरदर्शी नेतृत्व के तहत ही संभव हो सकता था और नंद वंश ने यह सिद्ध कर दिखाया।
नंद वंश की विरासत और ऐतिहासिक महत्व
नंद वंश का शासन भले ही विवादों और आलोचनाओं से घिरा रहा हो लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व अपार है। इस वंश ने भारत में पहले ऐसे साम्राज्य की स्थापना की जिसे हम एक ‘राज्य प्रणाली’ कह सकते हैं जिसमें संगठन, सेना, कर प्रणाली और प्रशासनिक ढांचा स्पष्ट रूप से विकसित था। इसके साथ ही इसने मौर्य साम्राज्य की नींव रखने में भूमिका निभाई क्योंकि नंदों की नीतियों और कठोर शासन ने जनमानस में असंतोष पैदा किया जिसे चंद्रगुप्त और चाणक्य ने एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया। नंदों ने एक ऐसे काल की शुरुआत की जिसमें भारत में सशक्त केंद्रीकृत शासन का उदय हुआ।