New Classical Languages ​​in India: एक महत्वपूर्ण निर्णय

New Classical Languages ​​in India: एक महत्वपूर्ण निर्णय

New Classical Languages ​​in India: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए मराठी, pali, प्राकृत, असमिया और बंगाली को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा देने का निर्णय लिया है। इस निर्णय के साथ, भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या अब 11 हो गई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस अवसर पर कहा कि पीएम मोदी हमेशा भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देते रहे हैं और यह कदम उस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

New Classical Languages ​​in India: एक महत्वपूर्ण निर्णय

5 नई शास्त्रीय भाषाएँ:

पहले से ही, तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था। अब मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को इस श्रेणी में शामिल किया गया है। इसके साथ ही महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों की भाषाओं को विशेष मान्यता मिली है।

भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या

भारत में सभी शास्त्रीय भाषाओं की सूची इस प्रकार है:

  1. तमिल – 2004
  2. संस्कृत – 2005
  3. तेलुगु – 2008
  4. कन्नड़ – 2008
  5. मलयालम – 2013
  6. उड़िया – 2014
  7. मराठी – 2024
  8. पाली – 2024
  9. प्राकृत – 2024
  10. असमिया – 2024
  11. बंगाली – 2024

2004 में शुरू हुआ यह पहल:

केंद्र सरकार ने 2004 में “शास्त्रीय भाषा” की श्रेणी का निर्माण किया, और तमिल को पहले इस दर्जे से नवाजा गया। इसके बाद संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को क्रमशः शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।

शास्त्रीय भाषा के मानदंड:

शास्त्रीय भाषा के मानदंड के अनुसार, उस भाषा का ऐतिहासिक रिकॉर्ड 1500 से 2000 वर्ष पुराना होना चाहिए। इसके अलावा, उस भाषा के पास प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का संग्रह भी होना चाहिए।

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साहित्यिक धरोहर का संरक्षण:

जब किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त होती है, तो उस भाषा की प्राचीन साहित्यिक धरोहर जैसे ग्रंथ, कविताएँ, नाटक आदि को डिजिटाइज किया जाता है और संरक्षित किया जाता है। इससे भविष्य की पीढ़ियों को उस धरोहर को समझने और सराहने में मदद मिलती है।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से न केवल समाज में उस भाषा और उसकी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूकता और सम्मान बढ़ता है, बल्कि उस भाषा के दीर्घकालिक संरक्षण और विकास में भी तेजी आती है।

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