Rise of Jainism: अहिंसा और आत्मा की शुद्धि का संदेश

Rise of Jainism: अहिंसा और आत्मा की शुद्धि का संदेश

Rise of Jainism: जैन धर्म भारत का प्राचीन धर्म है जिसका उदय लगभग 6ठी सदी ईसा पूर्व हुआ था। यह धर्म अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के सिद्धांतों पर आधारित है। जैन धर्म की स्थापना महावीर स्वामी ने की थी जिन्हें अंतिम तीर्थंकर माना जाता है। इसके पहले भी 23 तीर्थंकर हुए थे, जिन्होंने जैन धर्म की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाया।

जैन धर्म के इतिहास की पृष्ठभूमि

जैन धर्म का उदय उस समय हुआ जब भारत में ब्राह्मणवाद और वेदों के अनुकरण के साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक सुधार की जरूरत महसूस की जा रही थी। तत्कालीन समाज में जातिवाद, धार्मिक कुप्रथाएं और सामाजिक भेदभाव चरम पर थे। ऐसे में महावीर स्वामी ने एक नई विचारधारा प्रस्तुत की जिसमें समता, अहिंसा और आत्मा की शुद्धि पर जोर दिया गया।

महावीर स्वामी और जैन धर्म का विकास

महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के कुंडलग्राम में हुआ था। उन्होंने 30 वर्ष की आयु में सांसारिक जीवन त्याग कर तपस्या और साधना शुरू की। 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उन्हें ‘कुंडलिनी ज्ञान’ की प्राप्ति हुई। महावीर ने जीवन के चार मूल सत्य बताए – जन्म, मृत्यु, रोग और बुढ़ापा। उन्होंने कहा कि इन दुखों से छुटकारा पाने का मार्ग है अहिंसा और आत्मानुशासन। उनके उपदेशों ने समाज में एक नई चेतना का संचार किया।

जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाएं

जैन धर्म की मूल शिक्षा अहिंसा पर आधारित है। इसका अर्थ केवल मनुष्य से नहीं बल्कि सभी जीवों से हिंसा न करने का है। इसके अलावा सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयमित जीवन) और अपरिग्रह (मोह-माया का त्याग) जैन धर्म के मूल स्तंभ हैं। जैन धर्म में कर्म का सिद्धांत भी महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि मनुष्य के कर्म ही उसके जीवन और पुनर्जन्म को नियंत्रित करते हैं।

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जैन धर्म का सामाजिक प्रभाव

जैन धर्म ने न केवल धार्मिक क्षेत्र में बल्कि सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। जैन मनीषियों और व्यापारियों ने समाज में अहिंसा और नैतिकता को बढ़ावा दिया। जैन समुदाय ने शिक्षा, कला और संस्कृति को भी प्रोत्साहित किया। जैन मंदिरों और शिलालेखों ने भारतीय स्थापत्य और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

जैन धर्म का उदय भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इसकी शिक्षाएं आज भी विश्वभर में शांति, अहिंसा और आत्मा की शुद्धि के संदेश के रूप में प्रासंगिक हैं। महावीर स्वामी के उपदेशों ने भारतीय समाज को न केवल धार्मिक सुधार दिया बल्कि सामाजिक समरसता और मानवता की ओर भी प्रेरित किया। जैन धर्म आज भी अपने अनुयायियों के जीवन में अनुशासन और सदाचार का मार्ग दिखाता है।

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