Sharabhpuriya dynasty: गुप्त साम्राज्य के पतन के साथ उभरे शरभपुरीय शासक, जिन्होंने खुद को स्वतंत्र किया

Sharabhpuriya dynasty: गुप्त साम्राज्य के पतन के साथ उभरे शरभपुरीय शासक, जिन्होंने खुद को स्वतंत्र किया

Sharabhpuriya dynasty: शरभपुरिया वंश भारत के वर्तमान छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कुछ हिस्सों पर 5वीं और 6वीं शताब्दी के बीच शासन करता था। यह वंश शुरुआत में गुप्त साम्राज्य के अधीन रहा लेकिन जैसे-जैसे गुप्त साम्राज्य का पतन हुआ वैसे-वैसे शरभपुरिया शासक स्वतंत्र होते चले गए। इस वंश का सबसे बड़ा परिचय इसके ताम्रपत्रों और कुछ सिक्कों से मिलता है। दुर्भाग्यवश, इस वंश का पूरा इतिहास आज भी रहस्यमय बना हुआ है क्योंकि ज्यादातर जानकारी ताम्रपत्रों की सीमित कहानियों तक ही सीमित है।

राजा शरभ से आरंभ होती है कहानी

इतिहासकार ए. एम. शास्त्री के अनुसार शरभपुरिया वंश की शुरुआत राजा शरभ से हुई थी। शरभ को 510 ईस्वी के एरण शिलालेख में उल्लेखित “शरभराज” से जोड़ा गया है। इसी आधार पर शरभ के शासनकाल को 475 से 500 ईस्वी के बीच माना गया है। उन्होंने 25 वर्षों तक शासन किया होगा ऐसा अनुमान लगाया गया है। इसके बाद उनके पुत्र या उत्तराधिकारी नरेंद्र ने शासन संभाला और उनका कार्यकाल लगभग 500 से 525 ईस्वी तक माना गया है। नरेंद्र के बाद प्रसन्न नामक राजा आया जिन्होंने लगभग 525 से 550 ईस्वी तक शासन किया।

जयराज और शृंगारिक नामों वाले राजा

प्रसन्न के बाद जयराज का नाम सामने आता है जिनका शासनकाल लगभग 550 से 560 ईस्वी तक माना गया है। उनकी अंतिम शिलालेख में 9वें वर्ष का उल्लेख मिलता है जिससे यह अनुमान लगाया गया है कि उन्होंने लगभग 10 साल राज किया होगा। उनके बाद सुदेवराज और मनमात्र (दुर्गराज के नाम से भी प्रसिद्ध) जैसे शासकों ने शासन किया जिनका काल लगभग 560 से 580 ईस्वी के बीच रहा। इस वंश के अंतिम ज्ञात शासक प्रवरराज थे जिनका समय लगभग 580 से 590 ईस्वी माना जाता है।

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राजधानियों का स्थानांतरण और गूढ़ता

इस वंश की राजधानी शुरुआत में शरभपुरा थी। हालांकि शरभपुरा की पहचान को लेकर इतिहासकारों के बीच मतभेद हैं। कुछ विद्वानों ने इसे आंध्र प्रदेश और ओडिशा के कुछ स्थानों से जोड़ा लेकिन यह स्थान शिलालेखों की प्राप्ति स्थलों से काफी दूर हैं। अधिक संभावना इस बात की है कि शरभपुरा वर्तमान रायपुर जिले के आसपास रहा होगा। कुछ विद्वानों जैसे के.डी. बाजपेई और एस.के. पांडे ने इसे मल्हार से जोड़ा लेकिन ए. एम. शास्त्री का मानना है कि मल्हार की स्थापना 1000 ईसा पूर्व के आसपास हुई थी और वहां शरभपुरा नाम का कोई प्रमाण नहीं मिला है। मल्हार का सबसे प्राचीन नाम मल्लल या मल्लल-पट्टन था।

श्रीपुर की पहचान और राजधानी का परिवर्तन

एक समय में यह भी माना गया था कि शरभपुरा और श्रीपुर एक ही हैं लेकिन यह थ्योरी अब अस्वीकार कर दी गई है। श्रीपुर (वर्तमान सिरपुर) की पहचान अब स्पष्ट हो चुकी है। ऐसा माना जाता है कि राजा सुदेवराज ने श्रीपुर की स्थापना की और उसे द्वितीय राजधानी बनाया। उनके उत्तराधिकारी प्रवरराज ने राजधानी को पूर्णतः श्रीपुर स्थानांतरित कर दिया। शिलालेखों के अनुसार, अधिकतर ताम्रपत्र मल्हार और रायपुर के आसपास के क्षेत्रों से मिले हैं जो उस समय दक्षिण कोशल का हिस्सा थे।

इतिहास में उनकी जगह और सीमाएं

शरभपुरिया वंश के बारे में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि उनके ताम्रपत्र केवल भूमि दान आदि को रिकॉर्ड करते हैं। उनमें इतिहास की ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। हालांकि कुछ मुहरें वंशावली का संक्षिप्त रूप देती हैं। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के प्रयाग शिलालेख में कोशल के राजा महेन्द्र को पराजित करने का उल्लेख है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह महेन्द्र शरभपुरिया वंश का शासक हो सकता है लेकिन इसके समर्थन में कोई ठोस प्रमाण नहीं है। इस वंश के राजाओं में शरभ, नरेंद्र और प्रसन्न का विशेष महत्व है जिन्होंने अपने शासनकाल में शासन को सुदृढ़ करने का प्रयास किया।

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