Swami Vivekananda: टीचर की तानों से टूटा नहीं विवेक! क्या उसकी चुप्पी के पीछे छिपा है कोई बड़ा राज़

Swami Vivekananda: टीचर की तानों से टूटा नहीं विवेक! क्या उसकी चुप्पी के पीछे छिपा है कोई बड़ा राज़

Swami Vivekananda: कक्षा में हमेशा सबसे पीछे बैठने वाला लड़का था विवेक। उसके पास न नई किताबें थीं न अच्छा बैग न ही सही से चलने वाला पेन। उसका चेहरा हमेशा शांत और थका हुआ सा रहता था। सहपाठी उसकी हालत पर हँसते थे और कई बार तो टीचर भी ताने मारते थे। लेकिन विवेक कभी घबराया नहीं। वह हर दिन स्कूल आता और चुपचाप बैठकर हर शब्द को आत्मसात करता। उसका पेन आधा टूटा हुआ था। कभी लिखता तो कभी बीच में रुक जाता। मगर वही टूटा हुआ पेन उसका सबसे बड़ा साथी था। घर की हालत बहुत खराब थी। मां दिहाड़ी मजदूर थीं। कई बार चाय तक नसीब नहीं होती थी ताकि विवेक स्कूल जा सके। लेकिन इन सबके बावजूद उसने पढ़ाई से कभी मुँह नहीं मोड़ा।

मां की सीख और टूटा पेन बना ताकत

एक दिन जब टीचर ने गुस्से में विवेक से कह दिया, “तू तो जिंदगी में कुछ नहीं बनेगा”, तो वह बात विवेक के दिल में चुभ गई। वह घर आया और मां के सामने फूट-फूट कर रो पड़ा। बोला, “अब नहीं पढ़ूंगा। सब मेरा मजाक उड़ाते हैं। मेरे पास कुछ नहीं है।” मां ने चुपचाप उसका टूटा पेन उठाया और कहा, “बेटा, ये पेन टूटा हो सकता है लेकिन इसकी स्याही अब भी बाकी है। तू खुद को टूटा हुआ समझता है लेकिन तेरे अंदर मेहनत और हिम्मत अब भी बाकी है। जब तक तेरे अंदर स्याही है न, तब तक तू कुछ भी कर सकता है।” मां की ये बात विवेक के दिल में उतर गई। उस रात उसने खुद से वादा किया कि अब कभी हार नहीं मानेगा।

इन्हें भी पढ़े.  Shankh Air: भारत में नई एयरलाइन की शुरुआत - सभी विवरण जानें

मेहनत की रोशनी में बदली अंधेरी रातें

उसने पुराने किताबें मांगकर पढ़ाई शुरू की। दिन में स्कूल जाता और शाम को दूसरों के जूते पॉलिश करता। रात को स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ता। साधन नहीं थे लेकिन इरादा मजबूत था। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी। वह हर विषय में टॉपर बन गया। और जब बोर्ड का रिजल्ट आया तो पूरे जिले में उसका नाम सबसे ऊपर था। वही विवेक, जिसे कोई पहचानता तक नहीं था, अब अखबारों की सुर्खियों में था। स्कूल में तालियां बजीं और मां की आंखों में गर्व के आंसू थे। आज वह एक सम्मानित अधिकारी है लेकिन उसकी मेज पर वही टूटा पेन अब भी रखा है। प्रेरणा के तौर पर। याद के तौर पर। ये बताने के लिए कि जब तक अंदर स्याही बाकी है तब तक कोई सपना अधूरा नहीं।

विवेकानंद से मिली प्रेरणा ने बदली दिशा

विवेक की ये कहानी कहीं न कहीं स्वामी विवेकानंद की उस भावना से जुड़ी है जो उन्होंने युवाओं के अंदर जगाई थी। 1893 में शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में जब उन्होंने कहा था “अमेरिकावासियों, मैं आपको भारत की ओर से नमस्कार करता हूं,” तब पूरी दुनिया भारत की आध्यात्मिक शक्ति से परिचित हुई। उन्होंने बताया था कि आत्मविश्वास और आत्मबल से कोई भी देश और व्यक्ति महान बन सकता है। स्वामी विवेकानंद युवाओं से हमेशा कहते थे, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो।” यही बात विवेक जैसे युवाओं के लिए रोशनी की किरण बन सकती है। एक समय स्वामी विवेकानंद खुद भी संघर्ष में थे लेकिन उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने कहा था, “तेरा भविष्य बहुत उज्जवल है।” उन्होंने कभी खुद को टूटा नहीं माना। उन्होंने अपने अंदर की “स्याही” को पहचाना और दुनिया को प्रेरित किया। जैसे विवेक ने किया, वैसे ही हर युवा कर सकता है। बस जरूरत है खुद पर भरोसा रखने की और हार न मानने की।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *