Thailand-Cambodia के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद एक बार फिर हिंसक संघर्ष में बदल गया है। इस बार मामला केवल राजनीतिक और सैन्य तनाव तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इस संघर्ष के बीच दोनों देशों में धार्मिक और जनसंख्या संरचना को लेकर भी चर्चा तेज हो गई है। दोनों देशों में बहुसंख्यक आबादी बौद्ध धर्म को मानने वाली है, लेकिन वहां मौजूद हिंदू और मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति पर भी अब सवाल उठने लगे हैं, खासकर तब जब यह विवाद आम लोगों के विस्थापन और जान-माल के नुकसान का कारण बन गया है। यह विवाद दोनों देशों की सीमाओं पर रहने वाले नागरिकों के लिए भय और अनिश्चितता का कारण बन गया है, जिससे सामान्य जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गया है।
सीमा पर झड़पें बढ़ीं, विस्थापन की स्थिति हुई बेकाबू
24 जुलाई को थाईलैंड-कंबोडिया सीमा पर तब तनाव बढ़ गया जब थाई सेना के पांच जवान एक लैंडमाइन विस्फोट में घायल हो गए। इसके बाद हालात तेजी से बिगड़ गए और थाईलैंड ने कंबोडिया के राजदूत को निष्कासित कर दिया। इसके जवाब में कंबोडिया ने भी राजनीतिक संबंधों को सीमित कर दिया। 25 जुलाई की सुबह दोनों देशों की सेनाएं एक बार फिर आमने-सामने आ गईं। टैंकों, लड़ाकू विमानों और भारी तोपखाने से हमला किया गया जिसमें कम से कम 15 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 14 आम नागरिक और एक थाई सैनिक शामिल थे। इन हमलों में 40 से अधिक लोग घायल हुए, जिनमें 15 सैनिक भी शामिल हैं। थाई सरकार के अनुसार, सीमा से सटे चार प्रांतों से एक लाख से अधिक लोगों को निकालकर 300 राहत शिविरों में शरण दी गई है। वहीं, कंबोडिया के समरोंग शहर में भारी गोलीबारी के बीच डरे-सहमे नागरिकों ने पास के बौद्ध मंदिरों में शरण ली। इस संघर्ष के कारण सीमा क्षेत्रों में मानवीय संकट गहराता जा रहा है।
भारतीय दूतावास की एडवाइजरी और सात प्रांतों में यात्रा प्रतिबंध
थाईलैंड में भारतीय दूतावास ने इस संघर्ष को देखते हुए भारतीय नागरिकों के लिए यात्रा एडवाइजरी जारी की है। दूतावास ने अपने आधिकारिक एक्स (X) अकाउंट पर पोस्ट कर बताया है कि भारतीयों को थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा से सटे इलाकों में जाने से बचने की सलाह दी गई है। थाईलैंड पर्यटन प्राधिकरण द्वारा जारी नवीनतम अलर्ट में सात प्रांतों को अधिक संवेदनशील क्षेत्र बताया गया है। इन इलाकों में स्थित लोकप्रिय स्थल जैसे फू चोंग-ना योई नेशनल पार्क, प्रासात ता मुएन थोम और खाओ फ्रा विहान नेशनल पार्क अब आम पर्यटकों के लिए बंद कर दिए गए हैं। दूतावास ने भारतीय नागरिकों से इन क्षेत्रों की यात्रा से बचने और स्थानीय अधिकारियों के संपर्क में रहने की सलाह दी है। यह स्थिति न केवल पर्यटकों बल्कि वहां निवास करने वाले भारतीय नागरिकों के लिए भी चिंता का विषय बन गई है, जिन्हें रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी सावधानी से कदम उठाने पड़ रहे हैं।
थाईलैंड और कंबोडिया में धर्म और जनसंख्या संरचना
थाईलैंड की कुल जनसंख्या करीब 7.16 करोड़ है, जिसमें लगभग 95 प्रतिशत लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं। हालांकि, यहां करीब 4 प्रतिशत मुस्लिम आबादी भी रहती है, जो लगभग 60 लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। यह मुस्लिम समुदाय मुख्य रूप से देश के दक्षिणी हिस्सों में रहता है, जो कई बार अलगाववादी आंदोलनों और हिंसा की चपेट में आता रहा है। अगर हिंदू समुदाय की बात करें, तो थाईलैंड में करीब 52,000 हिंदू लोग रहते हैं, लेकिन उनकी संख्या कम होने के बावजूद थाईलैंड की संस्कृति पर हिंदू प्रभाव बहुत गहरा है। यहां रामायण को रामाकियन के नाम से जाना जाता है और गरुड़, विष्णु, लक्ष्मी, हनुमान जैसे हिंदू प्रतीकों का उपयोग थाई वास्तुकला, मंदिरों और राष्ट्रीय प्रतीकों में व्यापक रूप से होता है। थाईलैंड का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ भी हिंदू मान्यताओं से जुड़ा हुआ है।
वहीं, कंबोडिया की जनसंख्या करीब 1.67 करोड़ है, जिसमें 93 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्म को मानती है। यहां भी चम्पा मूल के मुसलमान अल्पसंख्यक के रूप में रहते हैं। कंबोडिया में वर्तमान में हिंदुओं की संख्या लगभग 15,000 है, लेकिन अतीत में हिंदू धर्म का यहां व्यापक प्रभाव रहा है। विश्व का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर अंगकोर वाट मंदिर, जो भगवान विष्णु को समर्पित है, कंबोडिया में स्थित है। यह मंदिर आज भी कंबोडिया की सांस्कृतिक और पर्यटन पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्राचीन खमेर साम्राज्य ने भारत से आई धर्म और संस्कृति को आत्मसात किया था, जिसके अवशेष आज भी कंबोडिया की वास्तुकला में दिखाई देते हैं। इन सभी धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं के बीच यह सीमा विवाद दोनों देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए अतिरिक्त चुनौती बन रहा है, जिन्हें हिंसा और विस्थापन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।