Vinayak Damodar Savarkar का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पंत और माता का नाम राधाबाई था। सावरकर बचपन से ही साहसी और विद्रोही स्वभाव के थे। उन्होंने अपने गाँव में ही शुरुआती पढ़ाई की और बाद में पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सावरकर का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में गिना जाता है। उन्होंने 1904 में ‘अभिनव भारत’ नामक गुप्त संगठन की स्थापना की थी। लंदन में कानून की पढ़ाई के दौरान उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए कई विदेशी नेताओं से संपर्क किया और देशभक्ति की भावना को जगाने के लिए ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ नामक किताब लिखी। यह किताब ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई थी।
कालापानी की सजा और संघर्ष
1909 में सावरकर पर ब्रिटिश अधिकारी नाशिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 50 साल की काले पानी की सजा सुनाई गई। अंडमान के सेलुलर जेल में सावरकर ने अनगिनत यातनाएँ सही लेकिन फिर भी अपने विचारों से समझौता नहीं किया। उन्होंने जेल में रहते हुए कई कविताएँ और लेख लिखे जो बाद में प्रेरणा का स्रोत बने।
हिंदुत्व विचारधारा के प्रवर्तक
जेल से रिहा होने के बाद सावरकर ने ‘हिंदुत्व’ की विचारधारा को विस्तार दिया। उन्होंने हिंदुओं की एकता और शक्ति पर ज़ोर दिया। उनका मानना था कि भारत में हिंदुओं को अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संगठित होना चाहिए। उनकी लिखी किताब ‘हिंदुत्व’ आज भी बहस और चर्चा का विषय बनी रहती है।
विवादों और विरासत
सावरकर का जीवन सिर्फ क्रांतिकारी गतिविधियों तक सीमित नहीं रहा बल्कि वह कई बार विवादों में भी घिरे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन पर साजिश में शामिल होने का आरोप लगा लेकिन कोर्ट ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। उनके समर्थक उन्हें राष्ट्रवादी और दूरदर्शी नेता मानते हैं जबकि आलोचक उन्हें विभाजनकारी विचारों का समर्थक बताते हैं। बावजूद इसके सावरकर का योगदान भारतीय इतिहास में अमिट है।