Indian Archaeology के पितामह के रूप में एक महत्वपूर्ण और सम्माननीय नाम है सर विलियम जोन्स। हालांकि, यह नाम सुनकर कई लोग आश्चर्यचकित हो सकते हैं, क्योंकि सर विलियम जोन्स को मुख्यतः भारतीय संस्कृति, भाषा और साहित्य के लिए जाना जाता है। लेकिन पुरातत्वशास्त्र के क्षेत्र में उनका योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण था, जिससे उन्हें इस सम्मानजनक उपाधि से नवाजा गया। इस लेख में हम जानेंगे कि सर विलियम जोन्स ने भारतीय पुरातत्वशास्त्र के क्षेत्र में किस तरह योगदान दिया और क्यों उन्हें ‘भारतीय पुरातत्वशास्त्र के पितामह’ के रूप में सम्मानित किया जाता है।
सर विलियम जोन्स: जीवन परिचय
सर विलियम जोन्स का जन्म 28 सितंबर 1746 को इंग्लैंड के लंदन में हुआ था। वे एक न्यायधीश, विद्वान और भारतीय संस्कृति के अध्ययन के प्रति गहरी रुचि रखने वाले व्यक्ति थे। जोन्स ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इंग्लैंड में प्राप्त की और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। 1768 में उन्हें बांगलादेश में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में एक न्यायधीश के रूप में नियुक्त किया गया, जहां उनकी मुलाकात भारतीय संस्कृति, भाषा और इतिहास से हुई।
जोन्स ने भारतीय इतिहास, संस्कृति और भाषाओं का गहराई से अध्ययन किया और भारतीय पुरातत्वशास्त्र में अपनी गहरी रुचि विकसित की। उन्होंने संस्कृत साहित्य और ग्रंथों का अध्ययन किया और भारतीय सभ्यता को पश्चिमी दुनिया में प्रस्तुत किया। उनकी यह रुचि भारतीय इतिहास और संस्कृति के अन्वेषण में उन्हें एक अग्रणी पुरातत्वज्ञ बना दिया।
भारतीय पुरातत्वशास्त्र में योगदान
सर विलियम जोन्स का भारतीय पुरातत्वशास्त्र में योगदान उल्लेखनीय था। उन्हें भारतीय पुरातत्वशास्त्र का पितामह माना जाता है, क्योंकि उन्होंने भारतीय पुरातात्त्विक स्थल और सांस्कृतिक धरोहरों को महत्वपूर्ण माना और उनका संरक्षण शुरू किया। वे पहले यूरोपीय थे जिन्होंने भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को गंभीरता से लिया और पश्चिमी दुनिया के सामने लाया।
- संस्कृत साहित्य और भारतीय संस्कृति का अध्ययन: सर विलियम जोन्स ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संस्कृत भाषा का गहरा अध्ययन किया और इसके माध्यम से भारतीय साहित्य और धार्मिक ग्रंथों का भी अध्ययन किया। उन्होंने संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं की तुलना की और इस बात की पुष्टि की कि भारतीय भाषाओं का एक सामान्य पूर्वज था, जिसे वे “इंडो-यूरोपीय” मानते थे। उनका यह अध्ययन भारतीय संस्कृति के संबंध में पश्चिमी दुनिया में नई जागरूकता और समझ उत्पन्न करने में सहायक था।
- भारतीय इतिहास के अध्ययन में अग्रणी: जोन्स ने भारतीय इतिहास को समझने में भी बड़ी भूमिका निभाई। उनके कार्यों से यह स्पष्ट हुआ कि भारतीय सभ्यता बहुत पुरानी और समृद्ध थी। उन्होंने भारतीय इतिहास के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से अध्ययन किया और भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं और संस्कृतियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की। उनके योगदान ने भारतीय इतिहास के अध्ययन को नए दिशा में मार्गदर्शन दिया।
- भारतीय पुरातात्त्विक स्थलों के महत्व को समझाना: सर विलियम जोन्स ने भारतीय पुरातात्त्विक स्थलों के महत्व को पहचानने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने प्राचीन भारतीय धरोहरों को संरक्षित करने की आवश्यकता को महसूस किया और इस दिशा में कई कदम उठाए। उन्होंने भारतीय प्राचीन स्थलों, मूर्तियों और अवशेषों का अध्ययन किया और उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्वता को पहचाना। उनकी सोच ने भारतीय पुरातत्वशास्त्र को एक नया दृष्टिकोण दिया, जिससे भारतीय धरोहरों का महत्व बढ़ा और उनका संरक्षण हुआ।
- एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना: सर विलियम जोन्स ने 1784 में एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना की, जो भारतीय उपमहाद्वीप के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भाषाई अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनी। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने भारतीय इतिहास, साहित्य, कला, संस्कृति और पुरातत्व के अध्ययन को बढ़ावा दिया। इस सोसाइटी ने भारतीय सभ्यता के समृद्ध और विविध पहलुओं को पश्चिमी दुनिया में प्रस्तुत किया और भारतीय ज्ञान को सम्मानित किया।
सर विलियम जोन्स का पुरातत्वशास्त्र में योगदान:
सर विलियम जोन्स का भारतीय पुरातत्वशास्त्र के क्षेत्र में योगदान विशेष रूप से उनके अध्ययन और शोध के कारण महत्वपूर्ण माना जाता है। उनकी पहल और विचारधाराओं ने भारतीय पुरातत्वशास्त्र को एक नई दिशा दी और भारतीय इतिहास और संस्कृति को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। उन्होंने यह बताया कि भारतीय सभ्यता का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध है और इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।
उनकी सोच और योगदान का प्रभाव आज भी देखा जाता है, जब हम भारतीय पुरातत्वशास्त्र और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों को देखते हैं। उनके कार्यों के कारण भारतीय पुरातत्वशास्त्र का अध्ययन न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में किया जाने लगा।
सर विलियम जोन्स का योगदान भारतीय पुरातत्वशास्त्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण और अद्वितीय है। उनके अध्ययन और कार्यों ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को पश्चिमी दुनिया में सम्मान दिलाया और भारतीय पुरातत्वशास्त्र को एक नई दिशा दी। उन्हें ‘भारतीय पुरातत्वशास्त्र के पितामह’ के रूप में मान्यता प्राप्त है क्योंकि उन्होंने इस क्षेत्र में नए विचारों और पहलुओं को जन्म दिया। उनका योगदान आज भी भारतीय पुरातत्वशास्त्र के अध्ययन में मार्गदर्शन प्रदान करता है, और उनकी विरासत को हमेशा याद रखा जाएगा।